climate change effect on agriculture Danger for Best Production till 2030 बदलते जलवायु का कृषि पर प्रभाव व उसका नियोजन
climate change effect on agriculture
climate change effect on agriculture
बदलते जलवायु का कृषि पर प्रभाव व उसका नियोजन climate change effect on agriculture
अजित सिंह ए संदीप रावल ए अनिल कुमार ए गोविन्द प्रसाद और एनण्केण् गोयल
कृषि कार्य मुख्यत मानसून वर्षा पर आधारित है। मौसम और जलवायु की अनिश्चित्ता देश की खाधान्न सुरक्षा के लिए सबसे बडा खतरा है। सूखा, पाला, ओलावृष्टि,लू और शीत लहर जैसे विपरित मौसम के कारण फसल उत्पादन मे प्रत्येक वर्ष काफी क्षति होती है यदि मौसम कृषि के प्रति अनुकूल नहीं होता है जिससे कि फसलों की उत्पादकता कम हो जाती है और फसलों में रोंग व कीटों का अधिक प्रभाव हो सकता है इससे किसान की खेती में अधिक नुकसान हो जाता है। जिससे कृषकों की सारी मेहनत व्यर्थ हो जाती है।
जलवायु परिवर्तन औसत मौसमी दशाओं के मिजाज में एतिहासिक (30 साल) लम्बे समय से मौसम में होने वाले परिवर्तन को कहते है। इस परिवर्तन के कारण औसत से अधिक या कम गर्मी, ठण्ड और वर्षा का होना हैं जिससे कि तापमान बढोतरी के कारण वाष्पीकरण में इजाफा हो जाता है जिसके फलस्वरूप कहीं बहुत ज्यादा वर्षा और कही सुखा पड़ जाने के आसार बढ जाते है इसी कारण हमारे जल संसाधन या तो क्षमता से अधिक भरे होने के कारण बाढ को बढावा दे रहे है और कहीं खाली पडे़ है। उदाहरण के लिए किसी स्थान पर कुछ वर्षों से अच्छी वर्षा हो रही हो और धीरे -धीरे वहा वर्षा कम होती चली जाती है तो इसे ही जलवायु परिवर्तन कहते है। जलवायु परिवर्तन का सबसे अधिक असर खेती पर ही पड़ता है। क्योंकि किसान अपनी फसलों का चुनाव मौसम के अनुसार ही करता है। अगर मौसम फसल के ंअनुरूप नही रहता है। तो किसान की फसल उस साल अच्छी नही होती है और इसका असर किसान की फसल की उपज और फसल की गुणवत्ता पर पड़ता हैं जिसकी वजह से किसान को अपनी फसल की कीमत कम मिलती हैं इसके अलावा भारत में मुख्यता खेती वर्षा पर ही आधरित है। इसी कारण वर्षा का खेती से सीधा सम्बन्ध है। हम सभी यह जानते हंै कि भारत एक कृषि प्रधान देश है अगर जलवायु परिवर्तन से फसल की उत्पादकता पर असर होता है। तो किसान की आय पर फर्क तो पड़ता ही है। इसके साथ-साथ भारत की अर्थव्यवस्था पर भी फर्क पड़ता है। क्योकि भारत की बहुत सी फसलों या फसलों से बने उत्पादों को विदेशों में भी निर्यात करते है अगर जलवायु परिवर्तन से फसलों की उत्पादकता में कमी आती है। तो विदेशों में फसलों का निर्यात नही होता है। जलवायु परिवर्तन प्राकृतिक अंातरिक बदलावों या बाहरी कारणों जैसे ज्वालामुखी में बदलाव या इसानों की वजह से जलवायु में होने वाले बदलावों से माना जाता है।
जलवायु परिवर्तन में बदलाब
प्राकृतिक बदलाव
1. सौर विकिरण में बदलाव
2. पृथ्वी की कक्षा में बदलाव
3. ज्वालामुखी विस्फोट
मानव क्रियाकलापी की वजह सेरू.
जलवायु परिवर्तन में मानव की वजह से अधिक तेजी से बदलाव हो रहा हैं
1. ग्रीन हाऊस गैस के उत्र्सजन में वृद्धि (वैश्विक तापमान)
2. धूल के उत्सर्जन में वृद्वि
जलवायु परिवर्तन प्रकृतिक और मानव द्वारा होता है। प्रकृतिक बदलावों के द्वारा जो जलवायु परिवर्तन होता है उसे नही रोका जा सकता परन्तु मानवों द्वारा जो जलवायु परिवर्तन होता उसे जरूर एक हद तक कम किया जा सकता है।
जो कि निम्नकारणों से होता हैं:-
जलवायु परिवर्तन का मुख्य कारण मनुष्य ही है। सामान्य रूप से जलवायु में परिवर्तन धीरे-धीरे होता लेकिन मनुष्य के द्वारा पेड़ पौधों की लगातार कटाई और खेती के स्थान पर मकान बनाने तथा कारखानों के प्रदूषण और अन्य प्रदूषण में अधिक वृद्वि होन के कारण जलवायु परिवर्तन तेजी से हो रहा है ंवातावरण में कुछ समय से कार्बनडाइआक्साइड की मात्रा में बढोतरी हुई है। क्योकि मनुष्य द्वारा जंगलों की कटाई कर के अधिक मात्रा मे कारखाने व मकान बनाये जा रहे है ंतथा मनुष्य पेड़ तो काट देते हैं परन्तु पेड बहुत ही कम मात्रा में लगाते है। यही वजह है कि इस समय वातावरण में कार्बनडाइआक्साइड बढ रही है खेतों में पराली जलाने से भी कार्बनडाइआक्साइड निकलती है और वातावरण में घूल जाती हैं वाहनों से निकलता धुआ भी वातावरण में कार्बनडाइआक्साइड की मात्रा में बढोतरी कर रहा है ।
ग्रीन हाऊस गैसे ग्रह के वातावरण या जलवायु में परिवर्तन और अतः भूमण्डलीय उष्मीकरण के लिए उत्तरदायी होती हैं इनमें सबसे ज्यादा उत्सर्जन कार्बनडाईआक्साइड, नाइट्रस आक्साइड, मीथेन, क्लोरो-फ्लोरो कार्बन, आदि गैस होती है। इन गैसों का उत्सर्जन आम प्रयोग के उपकरणों जैसे की वातानुकूलन, ्िफ्रज, कम्यूटर, स्कूटर , कार आदि से होता है। कार्बनडाईआक्साइड के उत्सर्जन का सबसे बड़ा स्त्रोत पैटाªेलियम ईधन और परंपरागत चूल्हे है जुगाली करने वाले पशुओं से भी मीथेन गैस का उत्सर्जन होता है। कोयला बिजली घर भी ग्रीन हाऊस गैस उत्सर्जन के प्रमुख स्त्रोत है जिसे ग्लोबल वार्मिग बढ़ रही हैं इन्ही कारणों से जलवायु परिवर्तन तेजी से हो रहा हैं। ग्लोबल वार्मिग का मतलब है कि पृथ्वी लगातार गर्म होती जा रही है और बर्फ के पहाड़ भी पिघल रहें है जिससे की बाढ की घटनाएॅ अधिक बढेगी और मौसम और मौसम का मिजाज पूरी तरह बदला हुआ दिखेगा।
क्या है ग्लोबल वार्मिंगः-
पृथ्वी के तापमान में वृद्वि और इसके कारण मौसम में होने वाले परिवर्तन के परिणाम स्वरूप बारिश के तरीकों में बदलाब हिम खण्डों के पिघलने से समुद्र के जल स्तर में वृद्धि होगी और वनस्पति तथा जन्तु जगत पर इसका अधिक प्रभाव पडेगा।
कारणः-
ग्लोबल वार्मिंग के कारण होने वाले जलवायु परिवर्तन के लिए सबसे अधिक जिम्मेदार ग्रीन हाऊस गैस है ग्रीन हाऊस गैस व¨ गैस होती है जो सूर्य की किरणों से मिल रही गर्मी को अपने अंदर सोख लेती है। ग्रीन हाऊस का इस्तेमाल समान्यतः अत्यधिक सर्द इलाको में उन पौधो को गर्म रखने के लिए किया जाता है जो अत्यधिक सर्द मौसम में खराब हो जाते है ग्रीन हाऊस में जब सूरज की किरणें जाती है तो वहां अधिक गर्मी हो जाती है क्योकि वे किरणे वापस ग्रीन हाऊस से निकल नहीं पाती है जब सूरज की किरणे धरती पर पडती है। तो ठीक उसी प्रकार वह और ठीक यही प्रक्रिया पृथ्वी के साथ होती है सूरज से आने वाली किरणो को पृथ्वी द्वारा सोख लिया जाता है इस प्रक्रिया से हमारे वातावरण मे अधिक गर्मी हो जाती है और इस प्रक्रिया से जलवायु परिवर्तन होता है।
घातक परिणामः-
ग्रीन हाऊस गैस वो गैस होती है जो पृथ्वी के वातावरण मे प्रवेश कर यहां का तापमान बढाने में कारक बनती है। इन गैसों का उत्सजर््ान अगर इसी प्रकार चलता रहा तो पृथ्वी के तापमान में बढोतरी हो सकती है अगर ऐसा हुआ तो इसके परिणाम बहुत घातक होगे दुनिया में बर्फ के पहाड़ पिघल जायेगे और समुन्द्र का जलस्तर बढ जाएगा और इसके साथ-2 समुद्र के किनारे वाले या ऐसे इलाक¨ मे बाढ़ की अधिक सम्भावना बन जायेगी।
कार्बनडाइआक्साइड:-
हम सभी कार्बडाई आक्साइड गैस के बारे में जानते है कार्बनडाइआक्साइड गैस वह होती है जो मनुष्य द्वारा छोडी जाती है और पैडो द्वारा इस गैस को ग्रहण किया जाता है।
जनसंख्याः-
बढती जनसंख्या जलवायु परिवर्तन का मुख्य कारण है जनसंख्या बढने से जंगलो की कटाई हो रही है ताकि मकान बनाये जा सके जिस के कारण जलवायु पर अधिक प्रभाव पडता है जिनसे से वातावरण में कार्बनडाइआक्साइड की मात्रा बढ रही है और कृषि योग्य भूमि की भी मात्रा कम होती जा रही है जिससे खाद्य या अनाज की उपयोग योग्य भूमि कम होने के कारण उत्पादन कम हो रहा हैं।
प्रभावः-
जलवायु परिवर्तन का प्रभाव सभी पर पडता है लेकिन इसका सबसे अधिक प्रभाव कृषि और कृषि से सम्बधित व्यवसायों पर भी पड़ता है जो कि निम्न प्रकार हैंः-
कृषि पर जलवायु परिर्वतन का प्रभावः-
1. जलवायु परिवर्तन से रबी की फसलो को ज्यादा नुकसान होता है क्योकि हमारी फसलें तापमान सवंेदनशील है इसलिए तापमान बढने पर अनाज उत्पादन में कमी आने की उम्मीद है।
2. गेहुँ और धान हमारे देश की प्रमुख खाद्य फसलंे है इनके उत्पादन पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव पड रहा है।
3. बागवानी फसलंे अन्य फसलो की अपेक्षा जलवायु पर्रितन के प्रति अति संवेदनशील होती है।
4. उच्च तापमान सब्जिय¨ं की पैदावार को भी प्रभावित करता है।
5. जलवायु परिवर्तन से अपत्यक्ष रूप से खरपतवारों रोग¨ं और कीटों को बढावा मिलता है।
6. सूखा और बाढ में बढोतरी हाने की वजय से फसलों के उत्पादन पर प्रभाव पडता है।
पशुओं पर जलवायु परिवर्तन का प्रभावः-
1. जलवायु परिवर्तन या तापमान बढोतरी से पशुओं के स्वास्थ पर भी असर पडता है।
2. तापमान बढोतरी का पशुओं के दुध उत्पादन व प्रजनन क्षमता पर सीधा असर पडेगा।
3. संकर नस्ल की प्रजातियां गर्मी के प्रति कम सहनशील होती है इसलिए उनकी प्रजनन क्षमता से लेकर दुग्ध क्षमता तक वे ज्यादा प्रभावित होती हैं।
जलवायु परिवर्तन का मृदा पर प्रभावः-
कृषि के अन्य घटको की तरह मृदा भी जलवायु परिवर्तन से प्रभावित हो रही है रासायनिक खादो पर अधिक निर्भरता के कारण मृदा पहले ही जैविक कार्बन रहित हो रही थी अब तापमान बढने से मृदा में लवणता बढेगी और जैव विविधता घटती जाएगी। भूमिगत जल स्तर के गिरते जाना भी इसकी उर्वरता को प्रभावित करेगा। बाढ जैसी आपदाओं के कारण मृदा का क्षरण अधिक होगा वही सूखे की वजह से इसमे बंजरता बढती जाएगी।
पैड़ पौधांे के कम हो जाने तथा विविधता न अपनाए जाने के कारण उपजाऊ मृदा का क्षरण खेतों को बंजर बनाने में सहयोगी होता है।
जलवायु परिवर्तन का रोग वा कीटो पर प्रभावः-
जलवायु परिवर्तन से कीट व रोगांे की जबरदस्त बढोत्तरी हो रही है तापमान मे नमी से पौधों में फफून्दी तथा अन्य रोगाणुओं के प्रजनन की वृद्धि तथा कीटांे और उनके प्राकृतिक शत्रुओं के अन्तः सबन्धो में बदलाव आदि दुष्परिणाम देखने को मिलते हैं। फसलो के रोगो व कीटांे का रोकथाम करने के लिए अधिक से अधिक कीटनाशको का प्रयोग करना पडता है जिससे की अन्य बीमारियो को बढावा मिलता है और जानवरों मे बीमारिया समान रूप से बढेगी। फसल में अधिक कीटनाशको का प्रयोग करने से किसान मित्र (केचुंऐ) लगभग खत्म हो चुके है और खेतांे मंे गैस उत्पन्न होती है जो कि वातावरण मे मिलकर उसे दूषित करती है जिसे वातावरण पर इसका प्रभाव पडता है।
जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने के कुछ उपायः-
भारत देश में कृषि पर जलवायु परिवर्तन से होने वाले प्रभावो को कम करने के लिए उनके महत्वपूर्ण कदम उठाने होगंे जिनमें कुछ मुख्य है।
फसल उत्पादन हेतु नई तकनीक¨ का उपयोगः-
फसल को सुरक्षित व समुचित उत्पादन हेतु ऐसी किस्मो की खेती की बढावा देना होगा जो नई फसल प्र्रणाली व मौसम के अनुकूल हो इसके लिए ऐसी किस्मो को विकसित करना होगा जो अधिक तापमान, सुखा और पानी में डुबे होने पर भी सफलता पूर्वक उत्पादन कर सके आने वाले समय में ऐसी किस्मो की जरूत होगी जो अधिक और सूर्य विकिरण के उपयोेग मंेे अधिक कुशल हांे।
खेतों का जल संरक्षण करनाः-
तापमान वृद्धि के साथ-2 साथ धरती पर मौसम नमी समाप्त हो जाती है ऐसे खेतों मंेे नमी का संरक्षण करना और वर्षा जल को एकत्र कर सिचाईं हेतु उपयोग में लाना आवश्यक होगा। जीरो टिलेज द्वारा बिजाई जैसी तकनीकी का इस्तेमाल कर पानी के अभाव से निपटा जा सकता है जीरो टिलेज द्वारा बिजाई और धान की सीधी बिजाई से गेहुँ और धान की खेती मे पानी की मांग कम हो जाती है इस विधि से फसल की उत्पादन लागत में 8-10 प्रतिशत तक कमी होती है और खेतो में जल संरक्षण करने से जलवायु को सही रखने में भी मदद मिलती है।
धान की पराली न जलानाः-
कुछ वर्षों से धान की पराली बहुत ही मात्रा मे जलाई जा रही है जिसे वातावरण तो दूषित होता ही है साथ मंे भूमि के जैव पदार्थ की मात्रा में कमी भी होती है और पराली जलाने से भूमि का तापमान भी बढ़ता है। जिससे कि अगली फसल के दानों का आकार भी कम हो जाता है। फसल की उपज व गुणवत्ता में कमी आती हैै। इसलिए किसान धान की पराली न जलायं जिससेे वातावरण भी शुद्ध रहेगा और उनकी अगली फसल की उपज भी अच्छी होगी तथा भूमि में नमी भी रहेगी ।
जरूरी बातः-
पेड़ पौधों की कटाई बहुत ही कम मात्रा में करना तथा अधिक मात्रा में पेड पौधों को लगाना व संरक्षण करना जलवायु परिवर्तन से बचाने का यह एक मुख्य उपाय है।
Note
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