Arbi Ki Kheti kaise karen F1 Seeds for best production

Arbi Ki Kheti kaise karen

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Arbi Ki Kheti kaise karen अरबी की काश्त

डा. कुशल राज

कृषि विज्ञान केंद्र उझा पानीपत,

हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय – हिसार

अरबी को मुख्यतः कन्द के रुप में उपयोग के लिए उगाया जाता है।अरबी का कन्द कार्बोहाइड्रेट और प्रोटीन का अच्छा स्त्रोत है।इसके कंदो में स्टार्च की मात्रा आलू तथा शकरकंद से अधिक होती है।इसकी पत्तियों में विटामिन ए खनिज लवण जैसे फास्फोरस, कैल्शियम व आयरन और बीटा कैरोटिन पाया जाता है।इन सब महत्व को ध्यान में रखकर किसान बन्धुओं को इसकी खेती परम्परागत तरीका छोड़ कर वैज्ञानिक तकनीक से करनी चाहिए।ताकि इसकी खेती से अधिकतम उपज प्राप्त की जा सके।अरबी की खेती वैज्ञानिक तकनीक से कैसे करें इस का विस्तृत उल्लेख इस प्रकार है।

arbi ki kheti
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अरबी की उन्नत स्थानीय किस्मों को ही लगाये, भारत में निम्नलिखित मुख्य किस्मों की काश्त की जाती है।

इंदिरा अरबी 1- इस किस्म के पत्ते मध्यम आकार और हरे रंग के होते हैं।तने (पर्णवृन्त) का रंग ऊपर- नीचे बैंगनी तथा बीच में हरा होता है।इस किस्म में 9 से 10 मुख्य पुत्री धनकन्द पाये जाते हैं।इसके कन्द स्वादिष्ट खाने योग्य होते हैं और पकाने पर शीघ्र पकते हैं, यह किस्म 210 से 220 दिन में खुदाई योग्य हो जाती हैं।इसकी औसत पैदावार 8से 13 टन प्रति एकड़है।

श्रीरश्मि- इसका पौधा लम्बा, सीधा और पत्तियाँ झुकी हुई, हरे रंग की बैंगनी किनारालिये होती है।तना (पर्णवृन्त) का ऊपरी भाग हरा, मध्य तथा निचला भाग बैंगनी हरा होता है।इसका मातृ कन्द बडा और बेलनाकार होता है।पुत्री धनकंद मध्यम आकार के व नुकीले होते हैं।इस किस्म के कन्द कंदिकाएँ, पत्तियां और पर्णवृन्त सभी तीक्ष्णता (खुजलाहट) रहित होते हैं तथा उबालने पर शीघ्र पकते हैं।यह किस्म 200 से 201 दिन में खुदाई के लिये तैयार हो जाती हैऔर इससे औसत 6से 8टन प्रति एकड़पैदावार प्राप्त होती है।

पंचमुखी- इस किस्म में सामान्यतः पॉच मुख्य पुत्री कंदिकाये पायी जाती हैं, कंदिकायें खाने योग्य होती हैंऔर पकने पर शीघ्र पक जाती हैं।रोपण के 180 से 200 दिन बाद इसके कन्द खुदाई योग्य हो जाते हैं| इस किस्म से 7से 10टन प्रति एकड़औसत कंद पैदावार प्राप्त होती है।

व्हाइट गौरेइया- अरबी की यह किस्म रोपण के 180 से 190 दिन में खुदाई योग्य हो जाती है।इसके मातृ तथा पुत्री कंद व पत्तियां खाने योग्य होती हैं।इसकी पत्तियां डंठल और कंद खुजलाहट मुक्त होते हैं।उबालने या पकाने पर कंद शीघ्र पकते हैं| इस किस्म की औसत पैदावार 6.5 से 7.5 टन प्रति एकड़है।

नरेन्द्र अरबी- इस किस्म के पत्ते मध्यम आकार के तथा हरे रंग के होते हैं| पर्णवृन्त का ऊपरी और मध्य भाग हरा निचला भाग हरा होता है।यह 170 से 180 दिनों में तैयार हो जाती है।इसकी औसत पैदावार 4.5 से 6टन प्रति एकड़है।इस किस्म की पत्तियॉ, पर्णवृन्त एवं कंद सभी पकाकर खाने योग्य होते हैं।

श्री पल्लवी- यह किस्म 210 दिन में तैयार हो जाती है और इसकी औसत पैदावार 6.5 से 7टन प्रति एकड़है।

श्रीकिरण- यह किस्म 190 दिन में तैयार हो जाती है और इसकी औसत पैदावार 6.5 से 7टन प्रति एकड़है।

सतमुखी- यह किस्म 200 दिन में तैयार हो जाती है और इसकी औसत पैदावार 6से 8टन प्रति एकड़है।

आजाद अरबी- यह किस्म 135 दिन में तैयार हो जाती है और इसकी औसत पैदावार 11से 12टन प्रति एकड़है।

मुक्ताकेशी- यह किस्म 160 दिन में तैयार हो जाती है और इसकी औसत पैदावार 8टन प्रति एकड़है।

बिलासपुर अरूम- यह किस्म 190 दिन में तैयार हो जाती है और इसकी औसत पैदावार 12टन प्रति एकड़है।

भूमि की तैयारी: इसकी खेती किसी भी प्रकार की भूमि में की जा सकती है। लेकिन बालुई दोमट भूमि जिसमे जल निकास का अच्छा प्रबंध हो, उत्तम होती है खेत को पहले मिट्टीपलटने वाले या डिस्क हल से जुताई करते हैंतथा बाद में हैरो लगाते है। तीन से चार जुताइयाँ सुहागा के साथ पर्याप्त होती हैं।

कंद लगाने का समय:अरबी दोनों मौसमों, गर्मी और वर्षा_rqमें लगायी जा सकती है। लगाने का उपयुक्त समय गर्मी में फरवरी – मार्च तथा वर्षा _rqमें जून-जुलाई है।

कन्दों  का चयन एवं मात्रा: बड़े और छोटे दोनों प्रकार के कन्दों को लगाया जा सकता है। लेकिन छोटे  कन्दों को लगाना अच्छा होता है लगभग 15-25 ग्राम वजन वाले स्वस्थ कन्दो का चयन करें एक एकड़ भूमि के लिए लगभग 3-4 क्विंटल कन्दों की आवश्यकता होती है।

कन्दों का उपचार:कन्दों को लगाने से पहले एग्लोल-3 (0.5%) या एमिसान -6 (0.25%) से 15-20 मिनट तक उपचारित किया जाता है।

कन्द लगाने की विधि:अधिक पैदावार के लिए उपयुक्त दूरी कतार से कतार 45-60 सें. मी. और पौधे से पौधे की दूरी 30 सें. मी. रखी जाती है लगाने के बाद इन कन्दों पर मोटी डोलियाँ बनाये, कन्द लगाने के बाद इन डोलियों को  सूखे घास से ढकने पर कन्दों का उगाव शीघ्र होता है और खरपतवार नियंत्रित रहते हैंफलत: पैदावार में वृद्धि होती है।

खाद एवं उर्वरक:मिट्टी की जांच के बाद ही उर्वरकों का प्रयोग करना चाहिए। एक एकड़ भूमि के लिए लगभग 8-10 टन गोबर की खाद, 40-48 किलोग्राम नाइट्रोजन, 20 किलोग्राम फॉस्फोरस एवं 20 कि. ग्रा. पोटाश की आवश्यकता होती है गोबर की खाद कन्द लगाने के 3 सप्ताह पहले खेत की तैयारीके समय डालते हैंनाइट्रोजन की आधी मात्रा और फॉस्फोरस तथा पोटाशकी सम्पूर्ण मात्रा कन्द लगातेसमय और नाइट्रोजन की बची मात्रा कन्द लगाने के 2 माह बाद खेत डालकर मिट्टीचढ़ा दी जाती है।

सिंचाई:अरबी की पत्तियों का फैलाव ज्यादा होने के कारण वाष्पोत्सर्जन ज्यादा होता है।फसल की सिंचाई गर्मी के मौसम में 8-10 दिनों के अंतर पर  तथा वर्षा _rqमें आवश्यकतानुसार 10-15 दिनों के अन्तर पर की जाती है।खुदाई के एक माह पूर्व सिंचाई बंद कर देना चाहिए, जिससे नये पत्ते नहींनिकलते हैं तथा फसल पूर्णरूपेण परिपक्व हो जाती हैं।

अंत: कृषि क्रियाएं एवं खरपतवार नियंत्रण:अरबी की अच्छी पैदावार के लिये यह आवश्यक हैं, कि खेत खरपतवारों से मुक्त रहे और मिट्टी सख्त न होने पाये।कन्दों का लगाव लगभग 20-25 दिनों में पूरा होता है। उस समय खरपतवार का नियंत्रण आवश्यक होता है इसके लिए 2-3 निराई – गुड़ाई एवं मिट्टीचढ़ाना आवश्यक होता है खड़ी फसल में उर्वरक का छिटकाव करने के बाद गुड़ाई करके मिटटी चढ़ा देनी चाहिए यह ध्यान रखना चाहिए कि कन्द हमेशा मिट्टी से ढके रहें।खरपतवार नियंत्रण के लिए रासायनिक खरपतवारनाशी सिमाजिन या एट्राजिन 600 से 800 ग्राम प्रति एकड़ की दर से रोपण पूर्व उपयोग किया जा सकता है।अरबी की फसल में प्रति पौधा अधिकतम तीन स्वस्थ पर्णवृन्तों को छोड़ बाकी अन्य निकलने वाले पर्णवृन्तों की कटाई करते रहना चाहिए, इससे कंदों के आकार में वृद्धि होती है।

मुख्य कीट एवं रोकथाम:

तम्बाकू की इल्ली-  इसकी इल्लियाँ पत्तियों के हरित भाग को चटकर जाती हैं, जिससे पत्तियों की शिराएँ दिखने लगती हैं तथा धीरे-धीरे पूरी पत्ती सूख जाती हैं।

रोकथाम- कम संख्या में रहने पर इनको पत्ते समेत निकाल कर नष्ट कर देना चाहिए।अधिक प्रकोप होने पर क्विनालफॉस 25 ई सी 2 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी या प्रोफेनोफॉस 3 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी का छिड़काव करना चाहिए।

एफिड (माहू) एवं थ्रिप्स- एफिड एफिड (माहू) एवं थ्रिप्स रस चूसने वाले कीट हैं।यह अरबी फसल की पत्तियों का रस चूस कर नुकसान पहुंचाते हैं, जिससे पत्तियांपीली पड़ जाती हैं।पत्तियों पर छोटे काले धब्बे दिखाई देते हैं, अधिक प्रकोप होने पर पत्तियां सूख जाती हैं।

रोकथाम- क्विनालफॉस या डाइमेथियोट के 0.05 प्रतिशत घोल का 7 दिन के अंतराल पर दो से तीन छिड़कावकर रस चूसने वाले कीटों को नियंत्रित किया जा सकता है।

मुख्य रोग एवं रोकथाम:

फाइटोफ्थोरा झुलसन (पत्ती अंगमारी)-  यह रोग फाइटोफथोरा कोलाकेसी नामक फफूंदी के कारण होता है।इस रोग में पत्तियों, कंदों, पुष्प पुंजो पर रोग के लक्षण दिखाई देते हैं।पत्तियों पर छोटे-छोटे गोल या अण्डाकार भूरे रंग के धब्बे पैदा होते है।जो धीरे-धीरे फैल जाते हैं, बाद में डण्ठल भी रोग ग्रस्त हो जातेहैं एवं पत्तियांगलकर गिरने लगती हैं तथा कन्द सिकुड़ कर छोटे हो जाते हैं।

रोकथाम- अरबी कन्द को बोने से पूर्व रिडोमिल एम जेड-72 से उपचारित करें।खड़ी फसल में रोग की प्रारम्भिक अवस्था में रिडोमिल एम जेड-72 की 2.5 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी का घोल बनाकर छिड़कावकरें।

सर्कोस्पोरा पर्ण चित्ती (पत्ती धब्बा)- इस रोग से पत्तियों पर छोटे वृताकार धब्बे बनते हैं।जिनके किनारे पर गहरा बैंगनी और मध्य भाग राख के समान होता है।परन्तु रोग की उग्र अवस्था में यह धब्बे मिलकर बडे धब्बे बनते हैं, जिससे पत्तियॉ सिकुड़ जाती हैं और फलस्वरूप पत्तियॉ झुलसकर गिर जाती हैं।

रोकथाम- रोग की प्रारम्भिक अवस्था में मेंकोजेब 0.3 प्रतिशत का छिड़कावकरें या क्लोरोथेलोनिल की 0.2 प्रतिशत मात्रा का छिड़कावकरें।

फसल की खुदाई, भंडारण एवंबिक्री:

खुदाई और उपज कंदों के आकार, प्रजाति, जलवायु और भूमि की उर्वराशक्ति पर निर्भर करती है। साधारणतः बुवाई के 130-140 दिन बाद जब पत्तियां पीली पड़कर सूखने लगती हैंतब फसल खुदाई के योग्य हो जाती है। कन्दों की खुदाई सावधानी के साथ करनी चाहिए क्योंकि कटे कन्द भण्डारण में शीघ्र सड़ने लगते हैं। एक एकड़ भूमि से छोटे कन्दों की पैदावार 70-80 क्विंटल तथा बड़े कन्दों की पैदावार 80-100 क्विंटल होती है।

भण्डारण के लिए अरबी के कंदों को हवादार कमरे में फैलाकर रखें। जहां गर्मी न हो। कंद एवं कंदिकाओं कीपानी से धुलाई तथा श्रेणीकरण करना आवश्यक है, केवल लम्बी अंगुलीकार कंदिकाओं को छाया में सुखाकरबांसकी टोकरी या जूट के बोरों में भरकर विक्रय हेतु भेजना चाहिए। इसे कुछ दिनों के अंतराल में पलटते रहना चाहिए। सड़े हुए कंदों को निकालते रहें और बाजार मूल्य अच्छा मिलने पर शीघ्र बिक्री कर दें।अरबी मातृकंदों को मात्र 1 से 2 महीने तक एवं पुत्री कंदिकाओं को 4 से 5 महीने तक सामान्य तापक्रम पर हवादार भण्डार गृह में भण्डारित किया जा सकता हैं।ग्रीष्मकालीन अरबी के कंदों का भण्डारण ज्यादा दिन तक नहीं किया जा सकता है।अतः खुदाई उपरांत एक माह के अंदर कंदों का उपयोग कर लेना चाहिए।

सारांश:अरबी की उचित किस्म के चुनाव व् बिजाई हेतु सभी सावधानियाँरख कर किसान मुनाफा कमा सकता है।

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