Side effects of chemical farming and its solutions
रासायनिक खेती के दुष्प्रभाव और समाधान के उपाय
जैसा कि हमें विदित है की, बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण खाद्य पदार्थों की मांग में दिन प्रतिदिन बढ़ोतरी होती जा रही है। अतः सीमित भू-भाग से इसकी आपूर्ति करना वास्तव में बहुत बड़ा चिंतन का विषय है। क्योंकि हम सीमित भू-भाग को बढ़ा नहीं सकते, जिसके परिणाम स्वरूप पिछले कुछ दशकों में खेती करने के नए-नए तरीकों में कृषि वैज्ञानिकों ने महारत हासिल की है, जिसमें उन्नतशील किस्मों के साथ-साथ नई पद्धतियों का भी विकास हुआ है। विकास कार्यों के साथ-साथ कुछ दुष्प्रभाव भी उत्पन्न हुए हैं, जिन्हें हम अनदेखा नहीं कर सकते। जिसके प्रभावों का उदाहरण आज दक्षिण एशिया के प्रांत में चलने वाली रेलगाड़ी से दिखाई देता हैं, जिसको कैंसर एक्सप्रेस का नाम दिया गया है। इस रेलगाड़ी में सैकड़ों यात्री प्रतिदिन कैंसर का इलाज करवाने के लिए सफर करते हैं। इन परिस्थितियों के पैदा होने का मुख्य कारण, कीटनाशकों का बहुतायत में इस्तेमाल करना हैं।
चित्र- रसायनो के अत्यधिक इस्तेमाल से उत्त्पन्न कुप्रभाव दुनिया भर में कीटनाशकों से हर साल लगभग 110,000-168,000 लोग मारे जाते हैं। भारत द्वारा अधिसूचित की गई आधिकारिक सूचना के आधार पर 2019 में कीटनाशकों से लगभग 24,064 लोगों की मौत हुई है। कीटनाशक केवल मानव स्वास्थ्य के लिए ही नहीं, बल्कि यह पर्यावरण के लिए भी हानिकारक है। इस प्रकार के कीटनाशक भोजन व सुक्ष्म जीवों की प्रजातियों पर भी नकारात्मक प्रभाव डालते हैं, जिसके परिणामस्वरूप यें मौजूदा हालातों में जैव विविधता के लिए भी खतरा बने हुए हैं। इन सब परिस्थितियों को देखते हुए अत्यधिक खतरनाक कीटनाशकों पर प्रतिबंध लगाना अत्यंत आवश्यक हैं। इन रसायनों के कारण मानव शरीर में खतरनाक विकार पैदा हो रहे हैं, जैसे कि मांसपेशियों में दर्द, धुंधली दृष्टि एवं ह्रदय से संबंधित समस्याऐं बढ़ती जा रही हैं। इस प्रकार के रसायन मित्र कीट एवं सूक्ष्म जीवों के लिए भी खतरा बने हुए हैं। अगर रसायनों का ऐसे ही उपयोग होता रहा तो निकट समय में मानव जाति को बहुत बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ सकता हैं। इन कीटनाशकों का दुष्प्रभाव आज हमारी आंखों के सामने प्रत्यक्ष हैं, मानव शरीर में प्रतिरक्षा दमन, हार्मोन की गड़बड़ी एवं कैंसर इत्यादि आमतौर पर दिखाई दे रही है। कीटनाशकों का पर्यावरण पर दुष्प्रभाव, संयुक्त राष्ट्र एवं अन्य देशों के लिए चिंता का विषय बना हुआ है। इन सब तथ्यों को ध्यान में रखते हुए, 2018 में 16 कीटनाशकों के प्रारंभिक राष्ट्रीय प्रतिबंध के बाद भारत सरकार ने 2020 में 27 कीटनाशकों के उपयोग पर प्रतिबंध लगाने का प्रस्ताव रखा। इन प्रतिबंधों के परिणामस्वरूप कीटनाशकों से होने वाली मौतों में गिरावट आई है। हालांकि, रसायनों ने कृषि प्रणाली में कीटों, रोगों और खरपतवारों के नियंत्रण में अहम भूमिका निभाई हैं। जबकि, लाभकारी कीट समुदायों पर उनके जहरीले प्रभावों का बहुत कम ध्यान दिया गया है, जोकि कृषि-पारिस्थितिकी तंत्र के रखरखाव और स्थिरता में योगदान करते हैं। अत्यधिक खतरनाक कीटनाशकों के उपयोग से मधुमक्खियों और केंचुओ जैसे मित्र प्रजातियों पर विनाशकारी प्रभाव प्रत्यक्ष रूप से दिखता है। अतः कीटनाशकों के प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष घातक प्रभावों पर पूर्ण विश्लेषण किया जाना चाहिए।
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समाधान के उपाय:
- इस स्थिति को दूर करने के लिए कृषि अनुसंधान संस्थानों को एक प्रमुख भूमिका निभानी चाहिए। जिसके लिए आवश्यकता है की, ऐसी परियोजनाओं को संम्मलित करें, जोकि कीटनाशकों के उपयोग से होने वाले गहरे प्रभावों पर प्रकाश डाल सकें और किसानो को भी कीटनाशक मुक्त खेती अपनाने के लिए प्रेरित करें।
- जैव विविधता को बढ़ाने के लिए फसल प्रणालियों को फिर से पुनः सृजन करें।
- जैव नियंत्रण रणनीतियों में विविधता लायें।
- कृषि मशीनरी और डिजिटल प्रौद्योगिकियों के लिए नए लक्ष्य निर्धारित करें।
- सार्वजनिक नीतियों के विकास का समर्थन करें और कीटनाशक मुक्त कृषि-खाद्य प्रणालियों की ओर निजी पहल करें।
- कीटनाशकों के उपयोग को महत्वपूर्ण रूप से कम करने के लिए संबंधित अनुसंधान गतिविधियों को प्रबंधित किया जाना चाहिए।
- जैविक खेती को बढ़ावा देना चाहिए।
- रसायनों के स्थान पर हमे दूसरे तरीके अपनायें, जैसे की रोग प्रतिरोधक किस्मों का चयन और ट्राइकोडर्मा जैसे मित्र सूक्ष्मजीवों का इस्तेमाल करना चाहिए।
- एकीकृत खाद, किट, रोग प्रबंधन की धारणा को अपनाना चाहिए। ऐसा करके, हम कृषि प्रणाली में जैविक तरीको पर कीट, रोग एवं खरपतवार नियंत्रण पर शोध को बढ़ावा देना चाहिए।
- इसके समाधान के लिए सभी को जागरूक होने की जरुरत है, जिसमे बिक्री से लेकर इस्तेमाल तक सभी संलग्न व्यक्तियों को कीटनाशकों का ज्यादा मात्रा में इस्तेमाल से होने वाले कुप्रभाव के बारे में सम्पूर्ण जानकारी होनी चाहिए।
अभिषेक कुमार1, चमन 2, अंकित कुमार3
1पादप रोग विभाग, चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविधालय, हिसार
2सब्जी विभाग, चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविधालय, हिसार
3खाद्य प्रौद्योगिकी विज्ञान, चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविधालय, हिसार
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