Chandan Ki Kheti Kaise Karen
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चंदन की खुशबू हर किसी का मन मोह लेती है। आंतरराष्ट्रीय
बाजार मे बेहद बढती मांग और सोने जैसे बहुमुल्य समझे जाने वाले चंदन की ऊंची कीमत होने के कारण भविष्य मे चंदन की खेती करना बहुतलाभप्रद व्यवसाय साबित हो सकता है। और देशो के तुलनामे भारत मे पाये जानेवाले चंदन के पेड मे खुशबु और तेल का प्रमाण (1% से 6%) सबसे ज्यादा है। ईसीवजह से भारतीय चंदन को आंतरराष्ट्रीय बाजार मे बडी मांग है। भारत मे चंदन रसदार लकड़ी (Hart wood) कि किमत 5000 से 12000 रुपये प्रती कीलो है। बारीक लकडी 800 रुपये कीलो है।
पौधे का परिचय (Introduction):
सामान्य नाम : चंदन,
वैज्ञानिक नाम : Santalum Album linn.
श्रेणी : सुगंधीय,
उपयोग :
चंदन का उपयोग तेल इत्र, धूप औषधी और सौंदर्य प्रसाधन के निर्माण में और नक्काशी में इसका उपयोगकिया जाता है। चंदन तेल, चंदन पाउडर, चंदन साबुन, चंदन इत्र.
उपयोगी भाग :
लकड़ी, बीज, जड़ और तेलउत्पति.
यह मूल रुप से भारत में पाये जाने वाला पौधा है। भारत के शुष्क क्षेत्रों विंध्य पर्वतमाला से लेकर दक्षिण क्षेत्र विशेष रूप से कर्नाटक और तमिलनाडु में में पाया जाता है। महाराष्ट्र मे, गुजरात में, राजस्थान, मध्यप्रदेश कि जमीन चंदन खेती के लीये बहोत अच्छी साबित होगी।
इसके अलावा यह इंडोनेशिया, मलेशिया केहिस्सों, आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में भी पाया जाता है। चंदन परजीवी वृक्ष है। इस पौधे की जड़ें हॉस्टोरिया के सहारे दूसरे पेड़ों की जड़ों से जुड़कर भोजन, पानी और खनिज पाती रहती है । चंदन के परपोषकों में नागफनी, नीम, सिरीस, अमलतास, हरड़ आदि पेड़ों की जड़ें मुख्य हैं। चंदन के आसपास अरहर की खेती हो रही है. चंदन से दूसरी फसलों पर कीटों का असर कम व पैदावार अच्छी होती है.
भूमि :
चंदन वृक्ष मुख्य रूप से काली लाल दोमट मिट्टी, रूपांतरित चट्टानों में ऊगता है। खनिज और नमी युक्त मिट्टी में इसका विकास कम होता है। उथले,चट्रटानी मैदान पथरीली बजरी मिट्टी, चूनेदार मिट्टी सहन करते है।कम खनिज युक्त मिट्टी में चंदन तेल की उपज बेहतर होती है।
समुद्र सतह से 600 से 1200 मीटर की ऊँचाई पर अच्छा पनपता है। किसीभी प्रकार के जलजमाव को यह वृक्ष सहन नहीं करता है। चंदन 5 से 50 सेल्सीयस(Celsius) तापमान मे भी आता है। 7 से लेकर 8.5 पीएच मिट्टी की किस्म में उगाया जा सकता है। 60 से 160 से.मी के बीच वाले वर्षा क्षेत्र चंदन के लिए महत्वपूर्ण होते है। इसे दलदल जमीन पर नहीं उगाया जा सकता है।
भूमि की तैयारी :
ऊचीत जल की व्यवस्था हो तो साल मे कभी भी लगा सकते है। पेड लगानेसे पहले गहरी जुताई की आवश्यकता होती है। 2-3 बार जोतकर मिट्टी क्षमता को बढ़ाया जाता है। 2x2x2 फिट का गढ्ढा बनाकर ऊसे सुखने दिया जाता है। मुरखाद कंपोस्ट खाद का ईस्तेमाल किया जा सकता है। 10×10 फिट के दुरीपर पेड लगाये 1 एकड 435 पेड आते है।
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खाद एवं सिंचाई प्रबंधन :
इसे अधिक उर्वरक की आवश्यकता नहीं होती है। शुरुवाती दिनो मे फसल वृद्धि के दौरान खाद की आवश्यकता होती है। मानसून में वृक्ष तेजी से बढ़ते है पर गर्मियों में सिंचाई की जरुरत होती है। ड्रिप विधि से सिंचाई को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। सिंचाई मिट्टी में नमी धारण करने की क्षमता और मौसम पर निर्भर करती है। शुरुवाती दिनोमे मानसून के बाद दिसम्बर से मई तक सिंचाई करे ।
कटाई (Harvesting)तुडाई,फसल कटाई का समय :
चंदन की जड़े भी सुगंधित होती है। इसलिए वृक्ष को जड़ से उखाडा जाता है न कि काटाजाताहै। चौथे साल से रसदार लकड़ी बनना शुरु होती है। चंदन की लकडी मे दो भाग होते है रसदार लकड़ी(Hart wood) और सूखी लकड़ी(Dry wood) दोनो की किमत अलग – अलग होती है। जब वृक्ष लगभग 12 – 15 साल पुराना हो जाता है तब लकड़ी प्राप्त होती है और पेड के जीवनपर्यन्त तक प्राप्त होती रहती है। जड़ से उखाडने के बाद पेड़ को टुकड़ो में काटा जाता है और डिपो में रसदार लकड़ी(Hart wood) को अलग किया जाता है।
चंदन खेती का अर्थशात्र :
चंदन धिरे धिरे बढनेवाला पेड है, लेकिन समुचित जल प्रबन्धन करने पर जैसे ठिंबक सिंचन ईस्तेमाल कर हर साल पेड के तने का घेरा 12 से.मी. से बढा सकते है। 12 से 15 साल बाद जमिनसे 5 फिट ऊपर तने का घेरा 80 से.मी. हो तो ऊस रक्त चंदन के पेड से 20 से 35 कीलो (Hart wood) मिल सकता है। आज (Hart wood) का मार्केट रेट प्रती कीलो रु.6000 से 12000 है।
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12-15 साल बाद का रु. 6000 रेट भी मानते है। और रसदारलकड़ी (Hart wood) 20 किलो भी मिलता हो तो 1 पेड से रु. 1,20,000 मिल सकते है,
1 एकड से 400 x 1,20,000 = रु. 4,80,00,000 (चार करोड अस्सी लाख रुपये) प्रती एकड केवल रसदार लकड़ी (Hart wood) से मिल सकता है।
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INTRODUCTION OF SANDALWOOD:
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Sandalwood, the most popular fragrant wood in the world, which is mainly used for the essential oils it contains, is currently a species consequently very expensive. It is also called as Indian sandalwood scientific name is santalum album.
Agro technology cultivation of Sandalwood can be grown in a variety of soil with pH ranging from 7 to 8.5, with area temperature ranging from 5to 50C. It is not region specific and can adapt to different environmental conditions. The plantation-grown trees with irrigation and fertilization perform exceedingly well compared to natural forest conditions. The grown trees start to produce heartwood formations in about 3 to 4 years and develop good heart wood ranging in diameter from 40cm to 80cm and hight ranging between 15 to 40 ft in about 12 to15 years.
After 12 years each plants may yield 20 to 35 kg heartwood, depend upon the growth of tree. Harvesting at this age is much more economical and commercially viable. The sandalwood oil obtained at this age may range from 3.5 to 4 percent with good percentage of total santalol content and in the roots oil content is 4 to 6 percentage.
Providing good host plants are the important criteria for the healthy growth of sandalwood. The sandalwood tree is apartial root parasite, requiring another host tree by its side, through which it draws nutrient for its good growth.
PLANTATION METHOD:
Well- developed healthy seeding of 6 to 8 months old and 1 to 2ft height is ideal for planting In the field. In one acre land total plants be around 435. the distance from plant to plant is 10 ft (10’*10’). The pitssize 45cm*45cm*45cm.
IRRITATION AND FERTILIZER :
In summer we should provide water twice a week at growing stage, other season you should apply once in a week. Sandal is a rain fed crop. Young plants require watering in summer months at 15-20 days interval till they are fully established. water should not storage in pit.
We should apply Bio – fertilizer at 60 days interval for good growth.
HOST PLANTS :
The sandalwood is a root parasite so you have to provide other plants for it to growth.
Primary host needs to be a leguminous plant that can fix atmospheric nitrogen that is essential for sandalwood’s effective growth. We suggest Cajanus cajan (pigeon pea, Toor Dal) plant as it’s a primary host andfurther, it requires a permanent host. This depends on the area and ambiance in which sandal is being grown.
1.Indian Sandalwood has 300% higher demand than supply.
2.100 gms of branch wood (sandalwood) costs Rs 900 (source : Mysore sandal soap, Karnataka)
- 5 ml of sandalwood oil costs Rs 1350 (source : Mysore sandal soap, Karnataka)
4.Per Kg of Sandalwood (heart wood ) is around 5000 rupees as on 2012. (Source- KSDL).
THE COSTING :
Per Acre Plant Rs.( 50 ) X 435 = 21750.00
Host plants Rs. 10 X 435 = 4350.00
Planting cost (Including soil workings, Pits at Rs. 5 – each) = Rs.4350.00
Cost of drip irrigation = Rs.15000.00
Fencing = Rs.42000.00
Annual weeding & soil working for 12 years (Rs.2000 x 12) = Rs. 24000.00
Irrigation (Rs.2000 x 12 ) = Rs. 24000.00
Fertilization (Rs.5000 x 12) = Rs. 60000.00
Security & Vigilance (Rs.40000/ – per year) for 12 yrs = Rs. 480000.00
Total Exp. = Rs.6,75,450/-
Sandalwood heart wood expected yield at the age of 15 years after taking 35 plants as moralities, thefts etc.( Last 3 year we should not apply water and fertilization for good oil content.)
No of sandalwood trees eligible for extraction – 400
Quantity of heart wood expected per tree -20kgs (400 x 20) =8000 kgs
(We count minimum wood production it’s raining between 20 to 35 kg/plant )
Average cost of sandalwood heart wood (Rs. 6000/- Kg) = Rs. 4,80,00000/-
(We count minimum price it’s ranging between Rs.6000/- to Rs.12000/-)
NET PROFIT WOULD BE :
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(Rs.4,80,00,000) -(Rs.6,75,450) =Rs.4,73,24550/Acre (Approx.)
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