गेहूं को बीमारियों व कीटों से बचाएं, अधिक मुनाफा कमाए Latest Update Enjoy in 2023
गेहूं को बीमारियों व कीटों से बचाएं
गेहूं को बीमारियों व कीटों से बचाएं, अधिक मुनाफा कमाए”
# महत्व:
खाद्यान्न फसलों में गेहूं बहुत ही महत्वपूर्ण फसल है। हमारे देश में चावल के बाद गेहूं को सबसे अधिक खाया जाता है। समस्त उत्तर भारत में बड़े भू-भाग पर रबी के मौसम में इसकी खेती की जाती है। उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, मध्यप्रदेश राजस्थान आदि गेहूं के प्रमुख उत्पादक राज्य हैं।
खाद्यान्न फसलों की दृष्टि से अत्यधिक महत्वपूर्ण फसल होने के कारण, इसका अच्छा उत्पादन लेने के लिए बीमारियों व कीटों से बचाना अति आवश्यक है। देश के अन्न भंडार भरने के साथ-साथ गेहूं फसल की अच्छी पैदावार देश के किसानों को समृद्ध व शक्तिशाली तो बनाती ही है तथा देश की खाद्यान्न स्थिति को ही मजबूत करने में सहायता करती करती है।
# गेहूं फसल के प्रमुख रोग व उनका समुचित प्रबंध:
- भूरा रतुआ (Brown Rust)
जैसा कि नाम से प्रतीत होता है कि इस रोग में गेहूं की पत्तियों पर भूरे व हल्के सतरंगी (orange) रंग के धब्बे बनते हैं। ये भूरे रंग के धब्बे पतियों के ऊपरी सतह पर पाए जाते हैं। जिनके कारण पौधे के पत्ते सूखने लगते हैं। यह प्राय: फरवरी- मार्च के महीने में देखने को मिलते हैं।
रोकथाम एवं उपचार:
- रोग रोधी किस्मों की बिजाई करें जैसे कि पी.बी.डब्ल्यू (PBW) – 550, पी.बी.डब्ल्यू (PBW) -343, एचडी (HD) – 2851, एचडी (HD) – 2967, डब्ल्यू. एच. (WH) – 1105, डब्ल्यू. एच. (WH) – 1025, कर्ण वंदना (DBW-187) आदि।
- अधिक रासायनिक खाद (Chemical fertiliser) का प्रयोग ना करें।
- बीजों का उपचार अवश्य करें तथा प्रमाणित बीजों के ही बिजाई करें।
- फफूंद नाशक Mancozeb 75% WP (Indofil, M- 45) को 600 से 800 ग्राम प्रति एकड़ के हिसाब से 200 लीटर पानी के साथ छिड़काव करें। अथवा Propiconazole (Tilt) को 200 मिलीलीटर दवाई के हिसाब से 200-250 लीटर पानी के साथ छिड़काव करें।
- पीला रतुआ (Yellow Rust)
इस बीमारी के कारण गेहूं के पत्तों पर पीले रंग (हल्दी जैसे) धब्बे बन जाते हैं। तथा पौधे व पतियों पर हाथ लगाने पर पीले रंग का हल्दी जैसा (पाउडर) रंग हाथों एवं कपड़ों पर लग जाता है। यह गेहूं फसल के लिए एक गंभीर बीमारी है। यह आमतौर पर पहाड़ी क्षेत्र से हमारे यहां मैदानी क्षेत्रों में आती है। इस बीमारी के कारण पत्ते व पौधे प्राय: सिकुड़ जाते हैं। जिसके कारण पैदावार में काफी कमी आ जाती है। यह समस्या गेहूं फसल में आमतौर पर फरवरी व मार्च महीने में आती है।
रोकथाम एवं उपचार:
- गेहूं के बीज का उपचार अवश्य करें, बीज उपचार के लिए सिफारिश की गई फफूंदनाशक दवाओं से सही तरीके से प्रयोग करें। सिफारिश गई फफूंदनाशक दवाएं की सूची इस प्रकार है।
बीज जनित रोगों के बचाव हेतु 1 ग्राम रेक्सिल (Tebuconazole 2% DS) या 2 ग्राम विटावैक्स (Carboxin 37.5%+Thiram 37.5% DS) या 2 ग्राम कार्बेंडाजिम (Bavistin 50% WP) या 2 ग्राम थाइरम (Thiram 75% DS) या 2.5 ग्राम मैनकोज़ेब (Mancozeb 75% WP) प्रति किलो बीज की दर से उपचारित कर बुवाई करें।
- सिफारिश किए गए प्रमाणित बीजों की बिजाई करें।
- रोग रोधी किस्मों की बिजाई करें जैसे कि डब्लू. एच. -157, डब्लू. एच. – 283, डब्लू. एच. – 582, यूपी- 2338 डब्ल्यू. एच. -711,, राज -3765 डब्लू. एच. – 1021 डब्लू. एच. -1025 एचडी -2967 आदि।
- प्रॉपिकॉनाजोल (Propiconazole) (टिल्ट) 200 ml दवाई का 200 लीटर पानी हिसाब से छिड़काव करें। अथवा कार्बेंडाजिम + मैनकोज़ेब (Saff powder) 500 ग्राम दवाई प्रति एकड़ के हिसाब से 200-250 लीटर पानी के साथ छिड़काव करें या मेंकोजेब 75% WP (Dithane M-45) 500 ग्राम दवाई प्रति एकड़ के हिसाब से 200-250 लीटर पानी के साथ छिड़काव करें।
- फसल चक्र (Crop rotations) अवश्य अपनाएं।
- खुली कांगयारी (Loose smut)
यह रोग आमतौर पर पौधों की बालियों में पाया जाता है। रोग ग्रस्त बालियों के दाने काले चूर्ण (ब्लैक पाउडर) में बदल जाते हैं। यह काला चूर्ण हवा तथा मानव सस्ये क्रियाएं (Agronomy practices) उपरांत चिपक कर या उड़कर अन्य पौधों की बालियों को नुकसान पहुंचाता है। जिसके कारण गेहूं की पैदावार एवं उसकी गुणवत्ता पर काफी विपरीत असर पड़ता है। इस रोग के कारण गेहूं की पूरी बाली काली हो जाती है जो कि खेत में दूर से ही दिखने लगती है।
रोकथाम एवं उपचार:
- यह भूमि ग्रस्त (Soil born) बीमारी है। इस रोग से ग्रस्त भूमियों की गर्मियों में मिट्टी पलटने वाले हल से गहरी जुताई करने से तेज धूप में इसे फैलाने वाले फंगस जीवाणु मर जाते हैं। यह तरीका बहुत ही आसान, सस्ता, टिकाऊ और कारगर है।
- उच्च गुणवत्ता वाले प्रमाणित बीजों की ही बिजाई करें।
- रोग रोधी किस्मों की बिजाई करें जैसे कि डब्ल्यू. एच. – 283, डब्ल्यू. एच. – 896, पी. बी. डब्ल्यू. – 396, एच. डी. -2851, एच. डी. – 4072, राज – 6276, के – 8251 आदि।
- खेत में फसल चक्र (crop rotation) अवश्य अपनाएं। रोग ग्रस्त भूमि में तीन-चार वर्षों तक अन्य फसलों की खेती करें।
- जिन क्षेत्रों में अनावृत कंडवा (Loose smut) एवं पत्ती कंडवा रोग (बीज जनित रोगों) का प्रकोप को वहां नियंत्रण हेतु 1 ग्राम रेक्सिल (Tebuconazole 2% DS) अथवा 2 ग्राम कार्बेण्डजिम (Bavistin 50% WP) या 2.5 ग्राम मैनकोज़ेब (Mancozeb 75% WP) प्रति किलो बीज की दर से उपचार करें।
- फफूंद नाशक Mancozeb 75% WP (Indofil, M- 45) को 600 से 800 ग्राम प्रति एकड़ के हिसाब से 200-250 लीटर पानी के साथ छिड़काव करें। अथवा Propiconazole (Tilt) को 200 मिलीलीटर दवाई के हिसाब से 200-250 लीटर पानी के साथ छिड़काव करें।
- बीज उपचार सिफारिश की (ऊपर दी) गई विधि के अनुसार ही करें।
- करनाल बंट (Karnal Bunt):
यह बीमारी सबसे पहले Dr. Manoranjan Mitra द्वारा वर्ष 1930 में करनाल (हरियाणा) क्षेत्र में मिली (अंबाला कुरुक्षेत्र, पानीपत, यमुनानगर आदि) । इसलिए इसका नाम करनाल बंट पड़ा। यह बीमारी गेहूं के दानों को प्रभावित करती है। रोग ग्रस्त दाने देखने में काले रंग के होते हैं। तथा जब इन खराब दानों को तोड़ते हैं तो इनमें से दुर्गंध स्मेल (Foul smell) आती है। यह बीमारी बलियों में बन रहे दानों को नुकसान पहुंचाती है। आमतौर पर अत्याधिक आर्द्रता (High humidity) वाले क्षेत्रों में इस बीमारी का प्रकोप अधिक होता है।
उपचार एवं रोकथाम:
- यह भूमि ग्रस्त (Soil born), हवा व पानी से फैलने वाली बीमारी है। इस रोग से ग्रस्त भूमियों की गर्मियों में मिट्टी पलटने वाले हल से गहरी जुताई करने से तेज धूप में इसे फैलाने वाले फंगस जीवाणु मर जाते हैं। यह तरीका बहुत ही आसान, सस्ता, टिकाऊ और कारगर है।
- उच्च गुणवत्ता वाले प्रमाणित बीजों की ही बिजाई करें।
- रोग रोधी किस्मों की बिजाई करें जैसे कि S-308.
- खेत में फसल चक्र (crop rotation) अवश्य अपनाएं। रोग ग्रस्त भूमि में तीन-चार वर्षों तक अन्य फसलों की खेती करें।
- बीज उपचार सिफारिश की (ऊपर दी) गई विधि के अनुसार ही करें।
- पाउडरी मिलडायू (Powdery mildew)
पत्तियों पर सफेद या मटमैला सा सफेद चूर्ण (like powder) बन जाता है। रोग के लक्षण स्पष्ट रूप से पत्तियों की निचली सतह पर दिखते हैं। रोग की सबसे गम्भीर अवधि पुष्प अवस्था के समय होती है। जब फफूंद के आक्रमण से फूल गिरतें हैं। इसके प्रभाव से फूल खिल नहीं पाते तथा गिरने लगते हैं जिससे फसल को भारी क्षति होती है। इस रोग के फैलने के लिए अधिकतम तापमान 35° (सेंटीग्रेट) है।
- 800 से 1000 ग्राम घुलनसील सल्फर (Sulfax) का 200-250 लीटर पानी के साथ छिड़काव करें। 2. रोग रोधी क़िस्मों का चुनाव करें जैसे कि WH-542, HD-2329 इत्यादि।
# गेहूं फसल में कीटों का नियंत्रण:
गेहूं फसल में पिछले कुछ वर्षों से फरवरी व मार्च महीने में आमतौर पर तेला एवम् चेपा (Jassid & Aphids) का प्रकोप अधिक देखने को मिला है। तेला एवं चेपा दोनों ही रस चूसक (Sucking pest) कीट हैं। इनका प्रकोप सबसे पहले खेत में बाहरी क्षेत्र/किनारों पर बाहर की तरफ (outer boundary) आता है तथा फिर धीरे-धीरे पूरे खेत में फैल जाता है। तेला एवम् चेपा गेहूं के पौधों की बालियों एवं पत्तों का लगातार रस चूसते रहते हैं। जिनके कारण पौधा कमजोर (रोग ग्रस्त) हो जाता है तथा उत्पादन में बहुत भारी पैदावार में नुकसान होता है।
रोकथाम एवं नियंत्रण: निम्नलिखित कीटनाशको का समय रहते छिड़काव करना चाहिए।
- Diamethoate (Rogar) 200ml प्रति एकड़ के हिसाब से 200-250 लीटर पानी में छिड़काव करें। पानी की मात्रा फसल की स्थिति के अनुसार घटाई एवम् बढ़ाई जा सकती है। अथवा ऑक्सीडेमिटोंन मिथाइल (Metasystox) 250 ग्राम दवाई प्रति एकड़ के हिसाब से छिड़काव करें या इमिडाक्लोप्रिड (कॉन्फीडोर) 40 मिलीलीटर दवाई प्रति एकड़ के हिसाब से 200-250 लीटर पानी में छिड़काव करें।
नोट: अधिक जानकारी के लिए अपने क्षेत्र के कृषि अधिकारी या नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र से संपर्क करें।
बिशन सिंह, कृषि विकास अधिकारी, कृषि एवं किसान कल्याण विभाग
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गेहूं फसल के प्रमुख रोग
गेहूं फसल के प्रमुख रोग व उनका समुचित प्रबंध
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